गाँव शब्द में जितना सुगंध है उतना मीठा तो शहद भी नहीं, एक बच्चे के लिए जितना जरूरी माँ का दूध है जिससे वो तंदुरुस्त रह सकता है, उतना ही जरूरी हम देहातियों के लिए गाँव है, हम जीविकोपार्जन के लिए उस सुबह को छोड़ आते हैं जो करोड़ो रुपयों से कीमती है!
"एक सुबह छोड़ आया हूँ एक शाम के लिए"
Village Life |
सूरज के उगने से गाँव नहीं जागता, गाँव को जागता देख सूरज निकलता है, गाँव की सुबह में आज भी पहले जितना ही मिठास है, कोयल आज भी अपनी मधुर आवाज से लोंगो का लोकरंजन करती है, किसान सबसे पहले आज भी खेतों के काम खत्म करते है, हीरा और मोती जैसे बैलों के जोड़े अब भी गाँव में देखने को मिलते हैं, आज भी माँ सर पर हाथ रख कर सहलाते हुए जगाती है! सुबह की हवा में अब भी वही ताजगी है जिससे गाँव वाले पूरे स्वस्थ रहते हैं!
"एक गाँव छोड़ आया हूँ एक शहर के लिए"
गाँव में अब भी रिश्ते वैसे ही कायम है, यहाँ जाति-धर्म से ऊपर अब भी मानवता जीवित है जो सही मायनों में गावँ को गाँव बनाती है, सुबह-शाम मंदिर और मस्जिद पर लोंगो का जमावड़ा एकता का प्रतीक अब भी बना हुआ हैं, अज़ान हो या कीर्तन-भजन दोनों ही आवाज से गाँव का माहौल भक्तिमय बना रहता है, यहाँ कोई भी चीज मेरा नहीं "हमारा" होता है, नदीम के दुकान में बैठ कर चाय की चुस्कियों के साथ अब भी लोग रोजमर्या के खबर पर विचार रखते हैं, मौलवी और पंडित'जी आपस में बैठकर यहाँ लोंगो को आज भी जागरूक करते हैं!
"मैं खेत छोड़ आया हूँ एक परिवार के लिए"
गाँव का मतलब हरे खेत नहीं, गाँव का मतलब होता है एक खुशहाल जीवन, जहाँ पहले व्यवहार सीखने को मिलता है, हरे खेत, फलों के बागान, अतरँगी फुलवारी, उन फूलों पर बैठी तितलियाँ, नाचते मोर, चहकती चिड़ियाँ, बच्चों का तालाबों में कूदना, दादी और नानी की कहानियाँ, दादा-नाना के साथ घूमना, चाचा या पापा के कंधों पर बैठ कर मस्ती करना, आँगन में पायलों की गूंज, पर्व-त्योहार पर घरवालों के साथ मेला जाना, मिट्टी की सुगंध और बिना किसी चिंता के बच्चों के साथ खेलना ही हमें गांव का असली मतलब बतलाता है!
" चेहरों पर मुस्कान खेतों में धान देख रहा हूँ, मैं गाँव देख रहा हूँ "
शादी देखने का असली मजा भी गाँव में ही आता है, क्योंकि गाँव कि शादियों में सारे रिश्तेदार एक जगह एकत्रित होते हैं, जिससे हमें रिश्तों की अहमियत का भी पता चलता है और सभी रिश्तेदारों, दोस्तों के आने से शादी किसी त्योहार से कम नहीं लगता है, खास करके बिहार की शादियों में दो चीज है जो काफी मनोरंजक होता है, पहला तो यहाँ के बाराती तीन-चार घंटो तक खाना खाते हैं जिसका अलग ही मजा है, दूसरा "परिछन" ये एक ऐसा रस्म है जहाँ लड़की वाले अपनी भड़ास हँसते हुए निकालते हैं, यहाँ दोनों पक्षो में मीठी नोक-झोंक होती है जो शादी में चार चाँद लगाने का काम करती है! वैसे परिछन में तो ना जाने कितने लड़के अपने साथी को भी खोज लेते हैं वही जिसे शहर वाले लव बोलते हैं!
"शादी श्रृंगार है ये परिणय सूत्र वाला त्योहार है"
गाँव झोपड़ियों और छोटे-छोटे मकानों से नहीं बनता है, गाँव तो हलधर किसान, ए-सी से भी ज्यादा आराम देने वाले कच्चे मकान, फ्रिज से काफी ठंडा पानी देने वाले चापाकल , गैस से स्वादिष्ट चूल्हे पर बने पकवान, लोकगीतों से साल भर जो त्योहार जैसा माहौल बना रहता है, और जहाँ पर महिलाओं और पुरुषों का सम्मान होता है वो जगह तब गाँव बनता है! यहाँ के लोग आज भी सादा जीवन पसंद करते हैं, आधुनिक युग में गाँव ग्लोबलाइज्ड तो हो रहा है पर गाँव आज भी गाँव है, गाँव में रहने का नशा जिसे एक बार लग गया तो समझ लीजिए इसका इलाज संभव नहीं है, जैसे चाँद को तोड़ नहीं सकते बस तोड़ने का सपना देख सकते है, वैसे गाँव को हम देहाती छोड़ नहीं सकते, बस छोड़ने का सपना देखते है!
"गाँव वहाँ के लोंगो के लिए माँ होती है"
:- Vipin Jha
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