Vipin Kumar jha ( Story, Shayari & Poems ) 7532871208

अक्षरों का कारीगर हूँ, शब्दों को जोड़-जोड़ कर वाक्य बनाता हूँ !

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Thursday, August 27, 2020

अधूरी-दास्तान (4):- काशी-विश्वनाथ की और ढाई-आख़र प्रेम का

 इस बार कंपनी के काम से बनारस जाना हुआ, मन बहुत खुश था हो भी क्यों ना? एक तो काशी-विश्वनाथ की नगरी ऊपर से ढाई-आख़र प्रेम के लिए प्रसिद्ध बनारस की गालियाँ , और सबसे खुशी की बात मैं जिसको अपने सपनों में देखता था शायद उस शहजादी से भी मिलना हो जाए, मानों मेरे कान में अभी से सुनाई दे रहा था!

"तू बन जा गली बनारस की 

मैं शाम तलक भटकूँ तुझमें"


शाम की फ्लाइट से मैं वाराणसी पहुँच गया और सीधा एयरपोर्ट से मीटिंग के लिए निकल गया। गाड़ी पहले से एयरपोर्ट के बाहर खड़ी थी, जो कि मुझे पहले ही ड्राइवर का नंबर और फ़ोटो कंपनी के तरफ से मिल चुका था, तो ज्यादा दिक्कत नहीं हुआ गाड़ी खोजने में। मन काफी उत्साहपूर्ण था और ड्राइवर भी रँगीन मिज़ाज का लगा, अब ड्राइवर बिना देरी किये मुझे मीटिंग स्थान पर ले जाने के लिए चल पड़ा, मैं भी कुछ कॉल पिक करने में व्यस्त था तो ड्राइवर से ज्यादा बातें नहीं कर पा रहा था, भाई-साहब बोलते है ना दिल तो ठहरा बिहारी , उसने जैसे ही मुझे फ्री देखा, बिना पूछे ही गाना चला दिया।

"तू लवर तीसरा है बाबू साहेब, 

  यादव जी के बाद मिश्रा है"

मेरा दिमाग जो काम करना बंद कर दिया था, वो खुद-बख़ुद चलने लगा, और अब मैं ड्राइवर से बात कर रहा था, बातों ही बातों में पता लगा भाई साहब तो छपरा से है और ये गीत अभी बिहार, यूपी में धमाल मचा रहा है, गीत मुझे भी काफी फनी लगा और जैसे-तैसे हम मंजिल तक पहुँच गए। यही कोई घण्टे भर में मीटिंग खत्म हुआ और मैं होटल के लिए निकल गया, जो कंपनी ने पहले से ही इंतज़ाम कर दिया था, अब आप लोग ही बताओ कोई बनारस आ कर बिना विश्वनाथ जी के दर्शन किये और गँगा घाटों का मजा लिए वापस कैसे जा सकता है, जबकी सुबह होते ही मुझे दिल्ली के लिए निकलना था। मैंने बॉस को कॉल करके बोल दिया, मेरा तबियत खराब है तो मैं आज नहीं आ सकता वापस और एक जानने वाले है तो उनके साथ उन्हीं के घर जा रहा हूँ, भाई बॉस तो बॉस होता है छूटते ही बोल रहा है कोई नहीं होटल में ही रुक जाओ पर मैंने जैसे-तैसे मना लिया और बोला जानने वाले के पास ही रुक जाता हूँ पर मुझे क्या पता बॉस को मेरे घूमने का प्लान पहले ही पता था, जैसे ही कॉल कट करने लगा सामने से आवाज आई एन्जॉय सही से करना और जल्दी वापस आना, बिना कुछ बोले मैंने कॉल काट दी, और ये सोचने लगा बॉस को कैसे पता चला, फिर याद आया उन्होंने जो ड्राइवर भेजा था वो उनका खबरी निकला!

मैं भी जानने वाले के साथ उनके होटल को गया, अरे आप-लोगों को बताना भूल गया गाड़ी में जिनके साथ घूमने का प्लान बना रहा था वो मुन्ना भैया थे जो कि काफी समय से हमारे फेसबुक मित्र थे और उनका अपना होटल भी था तो डरने वाली कोई बात नहीं थी, क्योंकि सारा ख़बर ले रखे थे, सुबह होते ही उनके साथ निकल पड़ा काशी-विश्वनाथ, अस्सीघाट और बनारस की गलियों का मज़ा लेने पर बोलते हैं ना किसी चीज को दिल से चाहो तो जरूर मिलता है, मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ जिसको अपने सपनों में देखता था वो  अचानक अपने सहेलियों के साथ अस्सी घाट पर दिखी और उसको देखते ही लगा जैसे समय रुक गया हो, नदी ने अपना प्रवाह बन्द कर लिया हो, पंक्षी की आवाज भी कही विलीन सी हो गई, उनका मुखड़ा मानो आज ही पूर्णिमा हो अगर दिन में चांद निकले तो चाँद को भी रश्क हो जाए और  मेरे मुँह से उसके लिए कुछ शब्द निकला,

"तू काशी विश्वनाथ की परी, मैं अस्सी घाट बन जाऊँ

 तू बनारस की रौनक, मैं शहर वाराणसी कहलाऊँ"

मुन्ना भैया के सहयोग से उस परी से मिलना हुआ और बातों ही बातों में पता चला वो भी मुझे जानती है पर लड़की होने के कारण कभी मैसेज नहीं किया,  उसने मुझसे बनारस आने का कारण पूछा मैंने भी बताया कंपनी के काम से आया था तो थोड़ा घूमने निकल गया, अब हम तीनों मतलब मैं, परी और मुन्ना भैया निकल पड़े बनारस की गलियों का मज़ा लेने कब शाम हुई पता नहीं चला पर मोहतरम्मा ने अपना नंबर दिया और बोली कल फिर साथ घूमते है और बनाते है यादगार दिन, मैं काफी खुश था, की कल का दिन मेरे जीवन के सबसे हसीन दिन में से एक होगा, पर जैसे ही खाना खाकर बिस्तर पर लेटा की बॉस का कॉल आया और बोले कल सुबह की फ्लाइट है तो याद से निकल लेना एक दिन में घूम लिए होगे कुछ, काम ज्यादा है तो कोई बहाना मत बनाना, अब मैं उदास हो चुका था और कब सो गया मुझे खुद पता नही लगा, पर सुबह का अलार्म लगा रखा था!

अलार्म बजते ही आँख खुल गई, मुन्ना भैया को मैंने, बॉस के साथ हुई सारी बातें बता दी, वो कहते है ना प्राइवेट जॉब में आप जंजीर से जकड़े हुए रहते हो, तो मुन्ना भैया भी  बिना कुछ कहे अपनी कार ले आए, हम अब एयरपोर्ट के लिए निकल रहे थे तब तक भैया ने बोला परी को एक बार कॉल कर ले मिलते निकल जाएँगे, हम गाड़ी में बैठ चुके थे मैंने तुरन्त कॉल लगाया पर आपने सुना होगा जब किस्मत सोया रहता है तो कोई साथ नहीं देता, परी ने भी कॉल नहीं उठाया फोन स्पीकर पर होने के कारण मुन्ना भैया बिना कुछ कहे गाड़ी एयरपोर्ट के तरफ ले लिए, मैं भी खिड़की खोल कर परी की आँखों और लहराते बालों में खोने लगा और गाड़ी अपने रफ़्तार से सड़क पर दौड़ रही थी, मैं सोच रहा था परी और अपने बदनसीब किस्मत के बारे में जो फिर से एक बार अधूरी रह गई और खुद पर हँस रहा था, गाड़ी में गीत भी समय के अनुसार ही बज रहा था!

"हम तेरे शहर में आये है

मुसाफ़िर की तरह"

                                                                                                            ✍️विपिन कुमार झा

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