बनारस को प्यार करनेवाले कम हैं, और उसके नाम पर डींग हांकनेवाले अधिक हैं. सभ्यता-संस्कृति की दुहाई देकर आज भी बहुत लोग जीवित हैं, कितने लेखक और कवि को सिर्फ बनारस के नाम पर अपने किताब को पाठको तक पहुँचाने मे काफी सहायता मिला, अब आते है अपने बीते पर!
ठंड का मौसम और बनारस के घाट से गंगा मे छलांग लगाना, मछुआरो का मछली के प्रति अत्यचार करना, कही पर लाशों का जलना, मंत्रोच्चारण का आवाज, बनारस की गलियों की महक, सबसे खास बात बनारस की सड़कों पर चलने-फिरने की काफी आजादी है. सरकारी अफसर भले ही लाख चिल्लाएं, पर कोई सुनता नहीं. जब जिधर से तबियत हुई चलते हैं. अगर किसी साधारण आदमी ने उन्हें छेड़ा तो तुरंत कह उठेंगे— ‘तोरे बाप क सड़क हव, हमार जेहर से मन होई, तेहर से जाब, बड़ा आयल बाटऽ दाहिने-बाएं रस्ता बतावे। इन सबमें रमता हुआ मेरी नज़र एक चाय के दुकान पर बैठी सुंदर कन्या पर गया! तकरीबन उन्नीस साल उम्र बनारसी-सिल्क हरे रंग की साड़ी, आँखों मे काजल, कान मे झुमका यहाँ तक हाथ मे हरे रंग की चूड़ी मानो उसकी खूबसूरती काशी-विश्वनाथ का वरदान हो। मैं उसको देखने के बहाने उस चाय के दुकान पर जा बैठा और एक कप चाय का फरमाइस कर छुपके से उसके ख़ूबसूती को देखने लगा।
कब चाय खत्म हुआ ये तो पता नही पर जब वो कन्या झट से उठी तो मेरा ध्यान सामने खड़े लड़के पर गया, वो बोल रहा था भैया अठारह रुपये हो गए। मैं भी बिना पूछे उसे एक बीस का नोट पकड़ाया और उस कन्या के पीछे लग गया!
तभी बारिश की बूंदे धरती की प्यास बुझाने मे लग गई। मैं पूरी तरह से भींग चुका था और कोई चारा भी नही दिख रहा था,क्योंकि होटल काफी दूर था। तब तक किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और एक घर की तरफ ले जाने लगी। मैं सिर्फ उसके चेहरे के तरफ देख रहा था, ये वही हरे रँग साड़ी वाली कन्या थी।शायद कुछ वो बोल रही थी,पर मैं तो उसकी खूबसूरती को निहार रहा था, तो मुझे कुछ क्यो सुनाई दे, नही आप ही बताइए नूर को देख कर कोई कुछ बोल सकता है, अब हम दोनों पूरी तरह से भींग चुके था।उसने दरवाजा खटखटाया ,एक पचास साल के सज्जन ने दरवाजा खोला और उस कन्या से पूछा बेटी ये कौन है ? लड़की ने बोला पापा मेरा दोस्त है दिल्ली से एग्जाम देने वाराणसी आए है! बारिश मे भींग गये तो अपने साथ घर ले आई। लड़की मुझे एक कमरे मे ले गई और बोली चेंज कर लो। उसके आँखों मे काफी गुस्सा और अपनापन दिख रहा था।
तभी बारिश की बूंदे धरती की प्यास बुझाने मे लग गई। मैं पूरी तरह से भींग चुका था और कोई चारा भी नही दिख रहा था,क्योंकि होटल काफी दूर था। तब तक किसी ने मेरा हाथ पकड़ा और एक घर की तरफ ले जाने लगी। मैं सिर्फ उसके चेहरे के तरफ देख रहा था, ये वही हरे रँग साड़ी वाली कन्या थी।शायद कुछ वो बोल रही थी,पर मैं तो उसकी खूबसूरती को निहार रहा था, तो मुझे कुछ क्यो सुनाई दे, नही आप ही बताइए नूर को देख कर कोई कुछ बोल सकता है, अब हम दोनों पूरी तरह से भींग चुके था।उसने दरवाजा खटखटाया ,एक पचास साल के सज्जन ने दरवाजा खोला और उस कन्या से पूछा बेटी ये कौन है ? लड़की ने बोला पापा मेरा दोस्त है दिल्ली से एग्जाम देने वाराणसी आए है! बारिश मे भींग गये तो अपने साथ घर ले आई। लड़की मुझे एक कमरे मे ले गई और बोली चेंज कर लो। उसके आँखों मे काफी गुस्सा और अपनापन दिख रहा था।
मैंने बिना रुके उससे पुछ दिया, तुमने बिना जाने मुझे अपने घर कैसे ले आई ? उसने बोला पहले फ्रेश हो जाओ बाते होती रहेगी! मैं ये सब सोचता हुआ कपड़े चेंज कर लिया। अरे आप लोगो को बताना भूल गया कपड़ा उसके बड़े भैया का था मर्दे।कपड़ा चेंज करके जब मैं बाहर हॉल मे गया तो उसके पापा ने बोला बैठो बेटा कहाँ से हो ? और कब तक इस शहर मे रुकने का प्लान है। मैंने भी बोल दिया, बिहार से है अंकल और दिल्ली रहते है ,एग्जाम खत्म हो जाएगा तो बस दिल्ली निकल जाऊँगा, काफी समय तक हम एक-दूसरे से बाते करते रहे। तब तक खाना लग चुका था। हम लोगों ने बड़े मजे से खाना खाया और मस्ती करते हुए उनके परिवार वालो से मुलाकात हुआ। बारिश अब बन्द हो चुकी थी। मैंने भी बोला अब चलता हुँ। उसके पिता ने पूछा कैसे जाओगे? अरे बेटी इनको कार से होटल तक छोड़ दो। वो कार का चाभी लेने कमरे मे चली गई। इधर सब बोलने लगे अगर दूसरी बार वाराणसी आये तो हमारे यहाँ रुकना वरना बुरा हो जाएगा!
हम दोनों अब कार मे बैठ चुके थे, मैंने हिचकते हुए पूछा तुम-मुझे कैसे, मेरा जबान लड़खड़ा रहा था, तब तक वो बोली मैंने तुम्हें कल वरुणा नदी के पास घूमते हुए देखा था। और आज सुबह भी तुम गंगा घाट के पास दिखे, मैं तुम्हारा पीछा कर रही थी तभी तुम पता नही कहाँ लापता हो गए। पर तुम्हे अचानक से चाय के दुकान पर देखा तो मैं समझ गई तुम मुझे देख रहे हो बस मैं चल पड़ी। मैंने पूछा तुम मुझे कैसे पहचानी। उसने बोला अपनापन भी कुछ होता है ,मैं सिर्फ उसके आँखो में देखा जा रहा था, और वो गाड़ी होटल के तरफ तेजी बढ़ा रही थी, वो कुछ बोलने वाली थी, तब तक मेरे घड़ी का अलार्म बजा । मुझे अपने-आप पर हँसी आ रहा था, क्योंकि मैं अभी भी दिल्ली के अपने कमरे में अपने बिस्तर पर लेटा था। और अपने सपने के बारे मे सोच रहा था। मैं हँसता हुआ चाय बनाने किचन की तरफ बढ़ा----------!
this is nice story,
ReplyDeletewhat is real story Mr. vipin
A well written story by young author Vipin Jha. After reading the whole story it seems to be a part of his travelogue writing. Best wishes to writer. Thsnks.
DeleteThanks you
DeleteThis comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletenice story
ReplyDeleteAdorable
ReplyDeletethanks
DeleteSuperrrr writer g
ReplyDeleteDo hi story hai sirf
ReplyDeleteJi, dhire dhire
Deleteबहुत नीक गल्प विपिन।
ReplyDeleteलिख कर पोस्ट करने से पहले कम से कम दो बार पढ़िए।
इससे और सुधार होगा। नजर स्त्रीलिंग है :)
सुझाव के लिए धन्यवाद, आपकी बात सही है नजर स्त्रीलिंक है, टाइपिंग मिस्टेक था!
Delete