Vipin Kumar jha ( Story, Shayari & Poems ) 7532871208

अक्षरों का कारीगर हूँ, शब्दों को जोड़-जोड़ कर वाक्य बनाता हूँ !

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Wednesday, November 4, 2020

मैंने तिरँगे को रोते देखा है

 


मैंने तिरँगे को रोते देखा है,

देश को मायूस होते देखा है,

देखा है अरि होते मानव को,

मौत से खेलते दानव को,

शोणित में सोये जवानों को,

ढ़हते चट्टानों को,

फटते आसमानों को,

बिलखती माता-ओं को,

हिचकते बच्चों को,

मैंने देखा है सिंदूर पोछती कन्याओं को,

शहादत देते एक पिता को,

मैंने देखा है बिन पिता के कोख में पल रहे उस बच्चे को ,

मैंने देखा है भारत-माँ के लिए जान लुटाते जवानों को,

मैंने देखा है डूबते सूरज को, रोते चाँद को,

मैंने देखा है जन,गण,मन के आगे तिरंगे में लपटे जवान को,

मैंने देखा है हर धर्म में समाते हिंदुस्तान को,

मैंने देखा है !

                                       ✍️विपिन कुमार झा

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