Vipin Kumar jha ( Story, Shayari & Poems ) 7532871208

अक्षरों का कारीगर हूँ, शब्दों को जोड़-जोड़ कर वाक्य बनाता हूँ !

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Saturday, November 30, 2019

अधूरी-दास्तान (2):- प्यार एक सफर है !

 वैसे तो यू कहाँ जाता है, जिंदगी एक सफर है!  पर जब हम सफर करते है तो हमारे मन में एक सवाल जरूर आता है, की जब कभी हम बस, ट्रैन या फ्लाइट में सफर करते है, तो हमारा मन पहले से ही बोलता है सफर में कोई कमसिन लड़की मिल जाए या अगर लड़की हो तो उसके मन मे रहता है कोई हैंडसम मुंडा मिल जाए, जिससे सफर आराम से कट जाए अगर थोड़ा सा भी नैनोंं के बीच बात छिड़ गया तो समझो जन्नत मिल गया, और हम अपने जिंदगी का सबसे खूबसूरत सफर  मानने लगते है! यह कहानी एक सफर पर लिखी है जो एक सच्ची घटना पर है!


भाई साहब कभी आप बिहार में मधुबनी-पटना तक का सफर करके देखिए, ऐसा भूचर-भूचर आदमी मिलेगा की आपका दिमाग चकरा जाएगा, अरे हम तो भूल ही गए थे कि हमको सफर के बारे में बताना है, तो तिरुपति ट्रैवल्स जो की बिहार का सबसे ज्यादा फेमस बस सेवा है, तो समझो उसमें कितने कहानियाँ रोज बनते और बिगड़ते होंगे, खैर आते है मुद्दे पर, मंगलवार का दिन था और दिन के करीब एक बज रहा था, एक उन्नीस साल की लड़की पटना जाने वाली बस में बैठ गई, किसी काम से वो पटना जा रही थी, पूरा बस बुजुर्गों से भरा था । पर लड़की समझदार थी तो उसने बगल वाले सीट पर बैग रख दिया, अगर कोई युवा या लड़की आई तो बैठ जाएगी अन्यथा पुराने चक्की में तो फिर पीसना था! तभी बाईस साल का एक युवक जो दिखने में दिलीप-कुमार से भी ज्यादा सुंदर था उस बस में चढ़ गया, बस में सीट खाली तो था नही, पर उसका नज़र बैग रखे सीट पर गया, एक बार तो संकोच हुआ पर सफर लम्बा होने की वजह से पुछ बैठा, कोई बैठा है क्या? लड़की ने बिना कुछ बोलते हुए बैग हटा लिया, भाई साहब लड़का तो होता ही है समझदार, बस हरी बत्ती मिलनी चाहिए, लड़का तुरंत बैठ गया! लड़की जो कि पहले से मन ही मन बोल रही थी बैठ जा,बैठ-जा,बैठ-जा !

बस ने करीब चालीस किलो-मीटर की दूरी तय किया होगा, की लड़के ने पूरा हिम्मत जुटा कर पूछ लिया  'क्या पटना जा रही है आप ? एक बात बताइए, एक नौजवान लड़का उसके बगल में सुपर हॉट लड़की बैठी हो तो बातें छेड़ने का मन होगा ही ना, पूछे भी क्यों न? उसके सुंदरता का क्या वर्णन करू ? कैटरीना भी फेल थी उसके सामने में! उसने एक हल्की सी मुस्कान देते हुए सर हिला दिया,  वैसे तो बिहार के बस में अधिकांश समय मिथुन की फिल्में ज्यादातर चलती है! जिसमें साइकिल के स्पोक के पीछे से मिथुन गौली चलता है या सनी पाजी का ग़दर चलता है, पर उस दिन का माहौल अलग था! उस दिन गाना चल रहा था "चौहदवीं का चाँद हो" और ऊपर से लड़की ने मुस्कान दे दिया था,जो कि लड़के के हौसले को सातवे आसमान पर ले कर चला गया था । लड़के ने बोला मेरा नाम मनीष है और आपका ? लड़की ने सुरीली शब्दो में कहा #वंदना (बदला हुआ नाम)। अब दोनों शांत हो गए पर उनके आँखों को कुछ और मंजूर था, दोनों एक-दूसरे को तो ऐसे देख रहे थे मानो दुनिया का आठवाँ अजूबा आज ही घोषित हो जाएगा!

आँखों की मस्ती में इतना डूब गए की सड़क के गड्डों से भी उनको कोई असर नही पड रहा था, अरे एक बात तो बताना भूल गया, ये घटना 2005 के आस-पास की है।  तो आप अगर कभी उस रास्ते पर सफर किये होंगे तो सफर का हालत पूरा पता होगा, बातों ही बातों में उनको एक दूसरे के बारे में जानने को बस इतना मिला की वंदना     ग्रेज्यूएशन फर्स्ट ईयर में और मनीष फाइनल ईयर में । तब तक वो पटना पहुँच गये थे क्योंकि आँखों का खेल ज्यादा हुआ था इसलिए पटना तो जल्दी पहुँचना था ही ,और बस पटना के बस स्टैंड में दस्तक दे चुकी थी! और वंदना को लेने उसके चाचा आये थे तो दोनों में कुछ ज्यादा बात हुआ नही था सिवाय आँखों के मधुशाला के सिवा, दोनों एक दूसरे को देखते निकल लिए ,पर हाँ एक बात ये हुआ था की दो दिन बाद वापसी है।

अब दो दिन उन दोनों को दो-सदी के बराबर लग रहा था, अगर आज-कल का जमाना होता तो फोन नंबर तो पक्का ले लिये होते, पर उस दो दिन में उनको सिर्फ एक बात याद आ रहा था आँखों का प्यार, शाहजहाँ को जितना समय ताजमहल बनबाने में नही लगा था, उससे ज्यादा तो इनको ये दो दिन सता रहा था। पर कहते है न ऊपर वाले के घर में देर है पर अंधेर नही, वो दिन भी आ गया, और मनीष दस बजे से वंदना के इतंज़ार में बस स्टैंड पर  खड़ा रहा, कितने बसें अपना रास्ता नाप चुकी थी। दिन के करीब दो बजे  मनीष अपने यादों के खुशियाँ समेटे, दिल पर पत्थर रख कर मधुबनी जाने वाले बस में बैठ गया। और रास्ते भर वंदना को कोसता रहा पर किस्मत में लिखा कुछ और था । बस अब एक ढाबे  पर आ कर रुक गई। एक इंटरेस्टिंग बात जो सभी ने नोट किया होगा, बस वाले को ढाबे वाले से डील हुआ रहता है, इतने बकरे है मेरे बस में पर हम स्टाफ लोग दबा के भोजन करेंगे,और उनका पैसा सवारियों से वसूला जाता है।

लड़के ने भी खाना खाया और अब बस चलने को तैयार थी तब तक दूसरी बस उसी ढाबे पर आ-कर रुकी । मनीष जिस बस में था वो बस अब चलना शुरू हो गया था की मनीष ने कुछ सोचते हुए बस में से पीछे की तरफ देखा तो  वंदना दूसरे बस से उतर कर सड़क की तरफ देख रही थी, मनीष ने एक आखिरी बार जोर से वंदना चिलाया, वंदना ने भी बस के तरफ देखा तब तक बस अपने रफ्तार में चल पड़ी थी, दोनों एक दूसरे को प्यार भरी नजरों से देखते रहे, वंदना करीब दस मिनट तक देखती रही ,अब बस काफी दूर निकल गई थी , और वंदना अपने आप को कोस रही थी। आज भी वंदना कही सफर करती है तो सभी बसों के पीछे देखती है शायद फिर वही आवाज़ कोई दे, फिर से वही नज़र मिल जाए जिसके लिए वंदना की आँखे आज भी प्यासी है! अब वंदना की शादी हो चुकी है वो अपने परिवार के साथ खुश है पर उसकी आँखें आज भी किसी को ढूँढ़ रही है !
                                                                                                                                               VIPIN JHA

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