Vipin Kumar jha ( Story, Shayari & Poems ) 7532871208

अक्षरों का कारीगर हूँ, शब्दों को जोड़-जोड़ कर वाक्य बनाता हूँ !

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Monday, October 26, 2020

किसान

अर्थव्यस्था'क मारि आ पलाश'क विलुप्तिकरण 

क' चुकल अछि किसान केर खोखला

मुदा आत्मविश्वास'क पोटरी बान्हि

नहु-नहु धाप बढ़ा रहल अछि खेत दिस

मोन मे उठि रहल छैक प्रश्न

की अहू बेर डूबि जाएत लागत? 

अहू बेर भरतैक कोठी

आ की फेर काट'ह पड़त पेट?

आँखि'क सोंझा बनि रहल परिदृश्य

पैरे इसकुल जाएत बुचिया

ऑपरेशन'क बाट जोहैत नेत्रहीन होएत माए

बाबू जी केर टूटल चप्पल 

जाहि सँ नापैत छैथ शहर'क सिमान

टूटल खाम्ह, ध्वस्त होइत घर'क नींव 

बिजुरि बिनु दलान पर फकफकएत  लालटेन

पानि ऊघि ऊघि गर्दन तोड़बैत बुचिया'क माए

आँजुर भरि जरूरत बनि क' रहत स्वप्न

किएकी लोकतँत्र'क बाजार मे बिकैत अछि आत्मवेदना

कागत पर अछि किसान क्रेडिट कार्ड योजना

संसद-भवन मे उठैत अछि आत्म-हत्या लेल आवाज

ओ आवाज बनि रहैत अछि अपना-आप मे एकटा सवाल

जकर चर्चा मे ओझराएल छैथ देश'क युवा!

आरि पर बैसल हम मापैत छी अपन पीड़ा

ओहि निहत्था जवान सँ

जे अपन हौसला सँ लड़ैत छैथ युद्ध

जकर भविष्य पिसा रहल अछि जनचेतना'क चक्की मे

आ हमर कान मे गूँजी रहल एकटा आवाज

जे सशक्त करैत अछि हमर आत्मबल के

जय-जवान जय किसान !

                                                               :~ Vipin Jha 

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