Vipin Kumar jha ( Story, Shayari & Poems ) 7532871208

अक्षरों का कारीगर हूँ, शब्दों को जोड़-जोड़ कर वाक्य बनाता हूँ !

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Thursday, February 2, 2023

प्रिये

प्रिये


प्रिये
अहाँ आब नहि रहलौं हमर
नहि बाँचल अहाँक प्रेम हमरा लेल
अहाँक आँखि मे देखलौं संशय
जे जौहि रहल अछि बाट कोनो बटोहिक
आ ताकि रहल अछि प्रेम 
किएक हमर प्रेम नहि छुलक अहाँक रूह

विज्ञान कहैत अछि
आँखिक बल मस्तिष्क लेल होइत अछि गुरुत्वाकर्षण
जे मस्तिष्क मे उतपन्न करैत अछि ज्वार-भाटा
तखन मनुष्य अपन लक्षण सं होइत अछि नष्ट
आर नष्टक कारण बनैत अछि जिह्वा

जिह्वाक माहुर सँ तिलमिलाएत अछि मानव शरीर
मुदा हम अहाँकेँ नहि कहब माहुर
किएक अहाँ हमरा सं जा चुकल छी दूर
ओतबै दूर जतेक दूर पृथ्वी सं अछि मंगल

अहाँक स्मृति केर समेटने हमहूँ ताकब बाट
ओ बाट रहत विश्वासक 
किएक तँ हाइड एंड सीक वला खेल
आदिकाल सं बनल अछि द्वेषक कारण
की अहाँ घुरि आयब
आकि बनि जाएब शिव
आर हमरा बना जाएब विद्यापति

 :- Vipin Jha

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